शहर अगर कुछ देर के लिए रुक भी जाये तब भी वह शांत नहीं होता। बीच-बीच में धकेलने की सुई सी उठती और फिर एक चीख के साथ बंद हो जाती। हर आवाज़ एक से बढ़कर एक ड़िमांड करती जितना चिल्ला सकती चिल्लाती, दूर तलक गूँजती और फिर रूक जाती। रास्ता दो नहीं तो चीख पड़ेंगे। सब कुछ उसी में खोकर कहीं रह जाता। इस धमकी को यहाँ मानता कौन है। आवाज़ें यहाँ पर धमकियाँ ही तो देती हैं। Continue reading “रेलवे रोड ब्रिज / नांगलामाची बस स्टैंड”