दीवार 1975
इस सीन में बडे भाई ने छोटे भाई को सुनने के लिए बुलाया है .वो बस सुनने आया है . ऐसा लगता है अपनी तरफ से उसे कुछ नहीं कहना है . उसके शरीर मे इंतज़ार का एक भाव है .लेकिन उसके इंतज़ार में एक बेचैनी है . बेचैनी इसलिए की वो जनता है कि वो क्या सुनने आया है ?बेचैनी इसलिए नहीं की उसे कोई हैरत होने वाली है .गौर करने वाली बात ये है कि वो तब तक नहीं बोलता है जब तक सवाल नहीं पुछा जाता .वैसे भी रिश्तों के सारे पुल टूट चुके हैं .इसी पुल के बहाने सुनने की जगह की तरफ भी अपने भाई को इशारा करता है। अमिताभ कहता है कि ”हम कहीं और नहीं इसी पुल के नीचे ही मिल सकते थे ”.
सुनने की एक जगह भी होती है.जो बात इस बार भाई कहना चाहता है वो यहीं कही जा सकती हैं — और यहीं सुनी भी जा सकती है. एक भरपूर भावुक सेटअप तैयार किया गया है .
पर सुनने का प्रमाण देने के लिए बोलना ज़रूरी होता है. अगर प्रतिक्रिया नही देंगे तो कैसे पता चलेगा की आप सुन रहे हो?
शशी कपूर आपने बॉडी –हाथों से, चाल से ,और नज़र न मिला के वो अपनेको disinterested listener बतला रहा है.
अमिताभ पूछता है/प्रतिक्रिया चाहता है कि सुनने मे भाई को दिलचस्पी है भी की नहीं .वो कहता है कि ”मैं किससे बात कर रहा हूँ .
लेकिन आज ‘दोनों कहना चाहते थे’
‘दोनों सुनाना चाहते थे’ . सुनने के लिए आज कोई नहीं आया।
कौन कहेगा, कौन सुनेगा में एक पारंपरिक हायरार्की तो है ही जो बड़े भाई और छोटे भाई में होती है, शशि कपूर की तलहथियोँ की कसमसाहट उस असंतोष से भी निकलती है। हाथ पीठ पर बँधे हैं, लेकिन सम्मान में नहीं।